पूर्व पार्षद दिलीप गोपलानी को उच्च न्यायालय से नहीं मिली राहत, मंत्रालय 6 सप्ताह में मामले का करें निर्णय उच्च न्यायालय ने दिया निर्देश

बुलंद गोंदिया। गोंदिया नगर परिषद प्रभाग 15 के पुर्व पार्षद दिलीप गोपलानी की सदस्यता अतिक्रमण के चलते जिलाधिकारी द्वारा निर्णय देते हुए रद्द की गई थी। इस संदर्भ में गोपलानी द्वारा मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में रिट याचिका दाखिल की थी जिसमें न्यायालय द्वारा राहत न देते हुए उपरोक्त मामले को नगर विकास मंत्रालय द्वारा 6 सप्ताह में सुनवाई कर मामले का निर्णय करने का निर्देश दिया।
गौरतलब है कि गोंदिया नगर परिषद के पूर्व पार्षद दिलीप गोपलानी ने सदस्यता रद्द होने के मामले में मुंबई उच्च न्यायालय खंडपीठ में याचिका क्रमांक 1932/ 2021 जिलाधिकारी गोंदिया के खिलाफ नगर पालिका नगर पंचायत व औद्योगिक नागरी अधिनियम 1965 की धारा 44 के तहत जिलाधिकारी गोंदिया द्वारा 12 अप्रैल 2021 को दिए गए आदेश के खिलाफ दाखिल की गई थी। जिस पर उच्च न्यायालय द्वारा सुनवाई करते हुए उपरोक्त मामला नगर विकास मंत्रालय के मंत्री के समक्ष अपील करने का निर्देश दिया साथ ही उपरोक्त मामले को 6 सप्ताह में मंत्रालय द्वारा सुनवाई कर हल करने का आदेश उच्च न्यायालय नागपुर खंडपीठ के न्यायाधीश मनीष पिताले-देशपांडे ने दिया साथ ही उपरोक्त मामले के हल होने तक पार्षद की रिक्त जगह को भरने तथा उपचुनाव की प्रक्रिया पर रोक लगाई तथा गोपलानी द्वारा जारी की गई याचिका को खारिज किया।
उपरोक्त मामले में सरकार की ओर से पैरवी एजीपी ए एम कडुलकर, प्रतिवादी महेश वाधवानी की ओर से एडवोकेट अनूप गिल्डा ,प्रमोद बापट, दुर्गा डोये ने पक्ष रखा उपरोक्त मामले में मंत्रालय द्वारा क्या निर्णय लेता है इस पर शहर वासियों की नजरें टिकी हुई है ।
मंत्रालय में भी मजबूती से रखेंगे पक्ष
पूर्व पार्षद दिलीप गोपलानी प्रकरण में आरटीआई कार्यकर्ता महेश वाधवानी ने बताया कि उपरोक्त मामले का खुलासा कर जिलाधिकारी के समक्ष रखा तथा उसके पश्चात केविड याचिका दाखिल कर उच्च न्यायालय में जिस मजबूती से अपना पक्ष रखा है ठीक उसी तरह वह मंत्रालय में भी अपना पक्ष मजबूती से रखेंगे जिससे पूर्व पार्षद किसी भी प्रकार की राहत ना मिले।
मंत्रालय में याचिका करेंगे दाखिल
इस मामले में पूर्व पार्षद दिलीप गोपलानी ने बताया कि न्यायालय के आदेशानुसार उपरोक्त मामले की अपील नगर विकास मंत्रालय में की जाएंगी जहां उन्हें विश्वास है कि न्याय मिलेगा साथ ही न्यायालय द्वारा तब तक उनके रिक्त पद को भरने की प्रक्रिया पर भी रोक लगाई गई है।

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