दिन-विशेष-आस्था के प्रतीक गुरुनानक देव जी

बुलंद गोंदिया। ( तमन्ना मतलानी) आज पूरे संसार में सभी के पूज्यनीय श्री गुरुनानक देव जी का ५५१ वां जन्मदिन हम सभी बड़े ही धूमधाम और पूर्ण श्रद्धा भक्ति से मना रहे है। गुरुनानक देव जी सिख पंथ के प्रथम संस्थापक है। उनके अलौकिक तेज से पूरा संसार परिचित है।
सिख , पंजाबी और सिंधी समाज की आस्था हमेशा से ही गुरुनानक देव जी पर रही है। जिस प्रकार से सिख धर्म में गुरुद्वारे है वैसे ही सिंधी समाज में भी गुरुद्वारे (टिकाणे) जगह-जगह पर स्थापित है। यहाँ पर भी गुरु ग्रंथ साहिब जी की बड़े श्रद्धा भाव से स्थापना की जाती है। नित-नेम से गुरबाणी और पाठ साहिब जी का आयोजन भी किया जाता है।
गुरुनानक देव जी ने अपने उम्र के कई वर्ष पाकिस्तान के करतारपुर गुरुद्वारे में व्यतीत किए थे। देश के बंटवारे के पश्चात करतारपुर दरबार साहिब पाकिस्तान देश के हिस्से में चला गया है। उस दिन से लेकर करतारपुर दरबार साहिब के दर्शन लगभग ४ किलोमीटर दूर हमारे देश से दूरबीन के माध्यम से होता था। अब करतारपुर कॉरीडोर के निर्माण के पश्चात श्रद्धालुओं के लिए करतारपुर जाकर दरबार साहिब के दर्शन करना सुलभ हो गया है।
सिख धर्म के संस्थापक और धर्मगुरु गुरुनानक जी का जन्म दिवस हर वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। गुरुनानक जयंती पूरे देश में मनाई जाती है। इस दिन सुबह-सुबह प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं और गुरुद्वारे में कीर्तन करते हैं। गुरुद्वारों को आकर्षक रोशनियों से सजाया जाता है। गुरुनानक जयंती के दिन देश के सभी गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन किया जाता है। इस लंगर को चखने तथा दर्शन हेतु सभी जाति धर्मों के लोग बड़े ही उत्साह के साथ गुरुद्वारों में जाकर मत्था टेककर गुरुनानक देव जी के दर्शन का लाभ लेते है। गुरु नानक जयंती के दिन ही देवों की दीवाली यानी देव दीपावली भी मनाई जाती है। इस प्रकार से पूरे देश में उत्साह और जश्न का माहौल रहता है।
गुरुनानक देव जी की की जीवनी…..
सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी का जन्म 30 नवंबर 1469 को हुआ था। उस दिन कार्तिक पूर्णिमा थी। गुरु नानक देव जी का जन्म पंजाब (पाकिस्तान) क्षेत्र में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी गांव के एक हिंदू परिवार में हुआ था। गुरुनानक देव के पिता का नाम कल्याण या मेहता कालू जी था। माता का नाम तृप्ती देवी था। गुरनानक देव का विवाह 16 साल की आयु में गुरदासपुर जिले के लाखौकी की रहने वाली कन्या के साथ हुआ था। इनका नाम सुलक्खनी था। गुरुनानक देव के दो पुत्र थे जिनका नाम श्रीचंद और लख्मी चंद था।
दोनों पुत्रों के जन्म के बाद ही गुरुनानक देव अपने चार साथियों के साथ घर से निकल गए थे और घूम-घूम कर उपदेश देने लगे थे। गुरुनानक देव ने तीन यात्राचक्र 1521 तक पूरे किए। इनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य स्थान शामिल थे।
गुरुनानक देव जी ने समाज से बुराइयां दूर करने का काम भी किया। वे मूर्तिपूजा के खिलाफ थे। उनका कहना था कि ईश्वर हमारे अंदर है। वह कहीं बाहर नहीं है। इनके ऐसे ही विचारों से समाज में परिवर्तन आया,लोग जाग्रत हुए। गुरुनानक देव जी ने ही करतारपुर (पाकिस्तान) नामक स्‍थान बसाया था। इनकी देह 22 सितंबर 1539 को ब्रह्मलीन हुई थी।
आज हम सभी मिलकर श्री गुरुनानक देव जी का ५५१ वां मना रहे हैं, देश की संपूर्ण जनता को गुरुवर के जन्मदिवस की लाख-लाख बधाईयां ……
आइये हम सभी इस वर्ष की गुरुनानक जयंती कोरोना महामारी के चलते शासन के द्वारा निर्धारित प्रोटोकाल का पालन करते हुए श्रद्धा भाव के साथ मनाएं।

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